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सोमवार, 7 जुलाई 2008

श्रद्धांजलि


गली में आज अजीब तरह का सन्नाटा छाया हुआ था, हर कोई स्तब्ध था. घटना ही ऐसी रोंगटे खड़े करने वाली थी. सोने से पहले मूला के छोटे लडके मुरारी ने सुनहरे कल के सपने देखे थे, वो जब अपना ठेला लगाकर शाम को घर लौटा तो उसकी बहन कमला ने भाई को पानी देते हुआ कहा की कल तो मेरा दिन है !! रखाबंधन है, मेरा भाई मेरे लिए क्या ला रहा है ? मुरारी बहुत खुस हुआ और तपाक से बोला की इस बार कुछ नही दूँगा तेरे को... और मन ही मन हंस रहा था, क्यूंकि उसने मन में कुछ सोच रखा था. उसका धंधा आजकल कुछ कम हो रहा था, लोग नए नए बने मल्टीप्लेक्स बाजारों में ज्यादा जा रहे थे. सोचा कल सुबह जल्दी जागकर कुछ स्पेशल ऑफर अपने ठेले पर लगाऊंगा; जिससे कुछ ज्यादा भीड़ जुट सके, कई तरह के आईडिया उसने सोचे. सुबह जल्दी जागा, उसको परवाह नही की क्या हो रहा है बाहरी दुनिया में, जल्दी से नहा धोकर अपने ठेले को लेकर उसमें सारा चाट का सामान रखने लगा, उसने सोचा की कोई आवाज नही हो...नही तो कमला उठ जायेगी, वो तो आज इसलिए ही इतना आनंदित है की रात को जब घर आएगा अपनी बहन के चहरे पर प्यारी सी मुस्कान देखेगा. सब कुछ सामान्य सा ही था, आवारा कुत्ते घर के सामने पहरेदारी कर रहे थे, शर्मा जी ढूध लेने जा रहे थे, अभी कुछ लोगो के लिए बिस्तर पर और नीद लेने का टाइम था, पर मूला के घर में लोग इतना नही सो सकते थे, एक दिन भी अगर समय से अपने काम पर अगर वोह नही जाते तो दूसरे दिन का खर्च कैसे चलेगा और ऊपर से कमर तोड़ती हुई महंगाई , उन लोगो के लिए सुकून नही था जीवन में, चाहे कोई भी मौसम हो, काम तो करना ही था. मुरारी 10th में तो सक्सेना सर के लडके के बराबर अंक लाया था, अगर उसको प्रैक्टिकल में थोड़े और नम्बर मिले होते तो स्कूल में वही टॉप करता, लेकिन आगे फिर वो नही पड़ सका, उसने ठेले पर अपने पिता का हाथ बताना शुरू कर दिया, उसको ठेला तो विरासत में मिला था , कुछ दिनों बाद मुरारी का ठेला पूरे कस्बे में मसहूर हो गया था और कई कई बार तो सुबह का निकला हुआ वह देर रात तक अपनी दूकान बंद कर पाता. लोग उसके नाम से उसको जानने लगे थे. लोगो को लगता की उसने चाट इसलिए महँगी की क्यूंकि वह मसहूर हो गया है, पर उसके पीछे तो कमर तोरती महंगाई थी. कड़ी मेहनत के बाद कुछ कर्ज चुकाने में सफल हो पाया था. मूला बहुत खुश था की उसके लडके ने उसका काम बढिया तरीके से संभाल रखा है. एक बाप को इसके सिवाय और क्या चाहिए की उसका बेटा उसके पैरो पर खड़ा हो गया है. सब कुछ ठीक चल रहा था. पर जैसे कहते है की दिन के बाद रात और छांव के बाद धुप जरूर आती है, इस गरीब घर की खुशियों के लिए भी ऐसा कोई तूफान जैसे इंतजार कर रहा हो. मुरारी के पास इतना समय नही था की वह रात को टीवी पर समाचार देख सके या फिर रियलिटी shows का लुत्फ उठा सके, उसके लिए तो उसके रोज के ग्राहक और चाट खाने वाले ही सब कुछ थे. उसकी बाहरी दुनिया उस कस्बे तक ही सीमित थी. गीत गुनगुनाते हुए अपने ठेले को लेकर वह चोराहे की और बाद रहा था. आज उसे बाजार की सड़को पर रोज वाल्क के लिए आने वाले गुप्ता जी और शर्मा जी की जोड़ी नही दिखाई दी, सोचा की कही बाहर गए होंगे या फिर सोते रह गए होंगे, ऐसा सोचते सोचते उसने अपना स्टोव बाहर निकाला और उसमें हवा भरने लगा. कुछ आवारा कुत्ते ठेले के पास उसका सामान खाने की कोसिस करते उसके पहले ही उसने डेला उठाकर उनको भगाया. आज उसको अपनी सारी उपलब्धिया याद आ रही थी, वोह सोच रहा था की क्यों मेरे मन में ये सारी बातें आज आ रही है. बचपन , उसकी माँ की असहनीय अवस्था और फिर असमय मौत सब कुछ जैसे उसकी आँखों के सामने से गुजर रहा हो, और फिर अचानक से सोचता की में क्यों ये सब याद कर रहा हूँ ?? आज उसने कुछ स्पेशल मिठाई बनाई थी जो वह हर ५ रुपये के चाट पर फ्री देने वाला था, सोच रहा था की आज की सारी कमाई मेरी बहन के लिए होगी. वो उसके लिए आज सायकिल लाने की सोच रहा था, मूला ने एक दिन सायकिल की वजह से कमला को बहुत डांटा था और फिर वो सहम कर छत पर चली गई थी. उसके सपनों में वो सायकिल पर जा रही थी और अपने आप को परी समझ रही थी, बडबडा रही थी की देखो आज मेरे भाई ने सायकिल दिलवा दी , उसके सपने और बुदबुदाहट से मुरारी की नीद खुली और उसने उसको बोला सोने दे, सुबह उठना है मुझे. वह उस दिन की बात को उसी रात भूल गया था पर आज उसे वोह सब याद आया और सोचा की रात को ठेले की कमाई को लेकर और कुछ और मिलाकर सायकिल लूँगा. यही सब सोचते सोचते एक - डेढ़ घंठा कब निकल गया, पता ही ना चला. आज बाजार में उतनी चहल पहल नही थी. जैसे ही सूरज की किरणों ने उजाला बिखेरा, मुरारी भी आशान्वित होकर खड़ा हो गया की ग्राहकों के आने का टाइम हो चला. कुछ देर में ग्राहक तो नही पर कुछ कुरते पजामे वाले लोग आए और बोले, तेरे को पता नही आज बंद है और तुने दूकान खोल ली, कुछ ज्यादा ही अपने आप को हीरो समझ रहा है ये, इस तरह से उन लोगो ने उल्टा सीधा बोला और उसको धमाका कर आगे बढ़ गए. उसने सोचा की कोई गुंडे लोग लग रहे है, मुझे इनको नजरअंदाज कर देना चाहिए. और वह फिर से अपने काम में लग गया. इस बार फिर से कुछ और कुरते पजामे वाले लोग आए पर कुछ दूसरी पार्टी के लग रहे थे, उन्होंने उसका उत्साह बढाया और बोले की तुम हो सही नागरिक जो ऐसे में अपनी दूकान खोलकर बैठे हो . उन लोगो के कुछ पोहा खाया और आगे बाद लिए. मोरारी थोड़ा आशंकित हुआ और सोचा की बात क्या है, लग रहा है गुंडों के दो गुट उन आवारा कुत्तो की तरह घूम रहे है, सोचा की घर वापस चला जाए और फिर उसे अपनी बहन याद आई और उसने सोचा की नही आज तो मैं कही नही जाने वाला. एक आशा के साथ वह वही ग्राहकों के इंतजार मैं खड़ा रहा. इस तरह की गहमागहमी मैं कुछ सुबह के १०:३० बज गए थे. इतने मैं एक लड़का चाट खाने आया. मुरारी उसको चाट बना ही रहा था की कुछ लोग नारे लगाते हुए निकले की 'गरीबो की पार्टी कैसी हो, ... जैसी हो". फिर बोले की शान्ति से आप दुकाने बंद कर ले नही तो हमारे कार्यकर्ता आयेंगे और बंद करा देंगे. मुरारी तो जैसे अब हर चेतावनी नजरअंदाज ही करता जा रहा था, क्यों न करे, उसके मन मैं कुछ सुनहरे सपने जो पल रहे थे. मुरारी का ऑब्जेक्टिव था अपने पेट का पालन और घरवालो को खुसिया देना, जबकि उन नारे देने वालो का तथाकथित लक्ष्य गरीबो की पार्टी बनाना और बंद को सफल बनाना था. इतने मैं ही कुछ लोगो मैं जो दूसरी पार्टी के थे, धक्का मुक्की होने लगी और एक चिल्लाया , मारो सालो को, छोडना मत, इससे अच्छा मौका नही मिलेगा .... लाठिया बहार आ गई और शान्ति का वो मोर्चा हिंसक रूप लेने लगा, किसी ने बन्दूक निकाली और हवा मैं फायर किया, मुरारी ने ठेला वही छोड़ा और भागने लगा, दूसरी तरफ पुलिस पर भी पत्थर बरसने लगे और तभी पुलिस को आन्स्सू गैस छोड़नी पड़ी , इतने में ही किसी ने एक गोली चलाई और वो लगी भागते हुए मोरारी को ...और ऐसे कई मुरारी इस तरह बंद का शिकार बने.


लोग कहते है की बिना बंद के सरकार नही सुनती, सब ठीक है, तर्कों का कोई अंत नही, पर अब मुरारी के परिवार का क्या होगा?? उसकी गली के सन्नाटे के पास भी इसका जबाब नही. क्या सरकार की राहत वो खुसी देगी जो उसकी बहन को उसकी सायकिल से मिलाती ...??

जेहन मैं ऐसे सवाल हर पल आते रहते है
फिर भी हम इन्सान क्यों न रह पाते है
हर गली मैं ऐसे कई मूला और मुरारी मरते है
फिर भी ये बंद कैसे सफल होते है
हर तरफ सन्नाटा छाया रहता है
फिर भी राजनीती के दलाल व्यापार करते है
हर कोई सुनकर स्तब्ध रह जाता है
फिर भी ये बंद हर रोज होते है
जान और माल का नुकसान ये करते है
फिर भी ये बंद क्यों बंद नही होते है


- राम

1 टिप्पणी:

Pragya ने कहा…

bilkul sachhai bayan ki hai ismein. aajkal rajniti ka doosra matlab hinsa, dhamaki, power hi rah gaya hai...
murari ke pariwar ka kya hoga?? iska jawab un netaoon ke paas bhi nahi hai shayad...
very emotional writing..